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ईश्वर की शरणागति के लिए इच्छाओं का दमन जरूरी :-जीयर स्वामी




दुबहर:- मनुष्य चाहता है कि हमारी सभी इच्छाएं पूर्ण हो लेकिन आश्चर्य  यही है कि संसार के किसी भी प्राणी की सभी इच्छाएं कभी पूरी नहीं हुई है। क्योंकि इच्छाओं का दमन नहीं हो  पाता है। एक इच्छा की पूर्ति होने के बाद स्वतः दूसरी इच्छा खड़ी हो जाती है। और यही दुख का कारण है। इसलिए इच्छाओं की पूर्ति से ज्यादा इच्छाओं का दमन जरूरी है। जब तक इच्छाओं का दमन नहीं होगा तब तक हम परमात्मा की ओर अग्रसर नहीं हो सकते।

उक्त बातें भारत के महान मनीषी  संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में अपने प्रवचन के दौरान कही।

 उन्होंने बतलाया की जितना संसारीक चीजों में माया मोह बढ़ता जाएगा उतना ही हम परमात्मा से दूर होते चलते जाएंगे। अतः जीवन में परमात्म प्राप्ति की इच्छा करने वाले लोगों को पहले अपने इच्छाओं का दमन करना चाहिए और इंद्रियों को बस में रखना चाहिए। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण नहीं हो सकती।आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है लेकिन इच्छाओं को पूरा कभी नहीं किया जा सकता है। अगर अपने अंदर कुछ विशेषता दिख रही है तो समझिये यह शरणागति में बाधक है ईश्वर प्राप्ति में बाधक है। वेदों का सार उपनिषद है, उपनिषदों का सार गीता है और गीता का सार भगवान की शरणागति है। जब तक अपने बल का अभिमान रहता है तब तक शरणागति नहीं हो पाती है। शरणागति बहुत सुगम है पर अभिमानी व्यक्ति के लिए बहुत कठिन है। मैं कुछ कर सकता हूं" यह अभिमान जब तक रहेगा तब तक शरणागति होना कठिन है।

ईश्वर की शरणागति होने पर  मनुष्य सदा के लिए निर्भय हो  जाता है। भगवान की शरणागति स्वीकार कर लेने पर भक्तों को  किसी प्रकार का भय नहीं रह जाता। ईश्वर का ध्यान लगाने पर बड़ा से बड़ा संकट टल जाता है।

रिपोर्ट:- नितेश पाठक

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