निर्जला एकादशी व्रत आज 31 मई बुधवार को, सभी व्रतों में इस एकादशी को सर्वश्रेष्ठ माना गया है
(बलिया )सनातन धर्म के पंचांग के अनुसार 31 मई को निर्जला एकादशी है। निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही भगवान विष्णु के निमित व्रत भी रखा जाता है। सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि निर्जला एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को सभी एकादशियों के समतुल्य फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को न केवल सभी पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अतः साधक श्रद्धा भाव से भगवान विष्णु की पूजा उपासना करते हैं। इस व्रत के कई कठोर नियम भी हैं। इन नियमों का पालन अनिवार्य है। इसके पश्चात ही व्रत सफल माना जाता है। अगर आप भी भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो व्रत करते समय इन नियमों का पालन जरूर करें। निर्जला एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इस दिन देर तक नहीं सोना चाहिए। इससे भगवान विष्णु अप्रसन्न होते हैं। अतः एकादशी को जल्दी उठें। स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु की पूजा उपासना करें। व्रती को दिन में भी भूलकर नहीं सोना चाहिए। ऐसा करने से व्रत का फल प्राप्त नहीं होता है।
- प्रोफेसर मुक्तेश्वर नाथ शास्त्री ने बताया कि शास्त्रों में काले रंग के कपड़े पहनकर शुभ एवं मांगलिक कार्य करने की मनाही है। अतः एकादशी के दिन काले रंग के कपड़े न पहनें। भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए एकादशी को पीले रंग के वस्त्र पहनें। पीले रंग का वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें।
एकादशी के दिन अपनी प्रशंसा और दूसरों की बुराई करने से परहेज करें। शास्त्र में ऐसा करने की मनाही है। इससे व्रत का पुण्य फल प्राप्त नहीं होता है। इस दिन अपना ध्यान भगवान विष्णु के कीर्तन-भजन में लगाएं।
भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है। अतः भूलकर भी एकादशी के दिन तुलसी दल न तोड़ें। ऐसा करने से भगवान अप्रसन्न होते हैं। एक दिन पूर्व ही तुलसी दल तोड़कर रख ले
। सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की पूजा को समर्पित है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी तीर्थों पर स्नान करने के बराबर पुण्य मिलता है. निर्जला एकादशी के व्रत को इन सबमें श्रेष्ठ और कठिन व्रत में एक माना गया है. निर्जला एकादशी का व्रत सभी मनोकामना को पूरा करने वाला माना गया है. शास्त्रों में निर्जला एकादशी व्रत का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है. बता दें कि, पूरे साल में कुल 24 और अधिकमास होने पर 26 एकादशी पड़ती है.
इन सभी एकादशी को अलग-अलग नाम से जाना जाता है और सभी का अपना विशेष महत्व होता है. खास कर निर्जला एकादशी के दिन किए गए पूजन व दान-पुण्य से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान विष्णु का आशीर्वाद दिलाने वाली सभी एकादशी में निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन होता है. इस व्रत में पानी पीना वर्जित माना जाता है, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है.
निर्जला एकादशी व्रत हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है. यह व्रत सभी एकादशी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है. निर्जला एकादशी के नाम से ही आप जान सकते हैं कि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए रखा जाता है, इसलिए इसका नाम निर्जला एकादशी है. यह व्रत बिना अन्न और जल के रखा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, 5 पांडवों में से एक भीमसेन अपने जीवनकाल में मात्र यही एक व्रत रखे थे. इस वजह से इसे भीम एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं.
*निर्जला एकादशी पूजा विधि*
निर्जला एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
उसके बाद पीले वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु का स्मरण करें और पूजा करें। फिर 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप जरूर करें।
उसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों के साथ करें और रात को दीपदान करें। पीले फूल और फलों को अर्पण करें।
श्री हरि विष्णु से किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमा मांगे।
शाम को पुन: भगवान विष्णु की पूजा करें और रात में भजन कीर्तन करते हुए जमीन पर विश्राम करें।
फिर अगले दिन सुबह उठकर स्नान आदि करें। इसके बाद ब्राह्मणों को आमंत्रित करके भोजन कराएं और उन्हें अपने अनुसार भेट दें।
इसके बाद व्रत का पारण करें, सभी को प्रसाद खिलाएं और फिर खुद भोजन करें।
*🙏प्रोफेसर मुक्तेश्वर नाथ शास्त्री🙏*
*कर्मकांड केसरी,याज्ञिक सम्राट*
चरित्रवन बक्सर बिहार
रिपोर्ट त्रयंबक पांडेय गांधी
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