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तुम मजदूरों की सूनो वो तुम्हारी सुनेगा, तुम एक बार साथ देगा वो हमेशा याद रखेगा


रसड़ा (बलिया) भारत कृषि प्रधान देश है भारत में ज्यादातर लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं भारत  का मजदूर अपने हौसले के बल पर तपती दोपहरी की गर्मी में हाइवे पर रास्ता नापते मजदूर जिनको न मरने की चिन्ता न जीने की तमन्ना
बस एक बार अपने परिवार व बुढ़े माँ बाप के चरणों मे सर झुकाने की चाह लिये आह भरते कदम हर रोज बढाकर सैकङो किलोमीटर का रास्ता मजदूर तपती गर्मी मे इन दिनों नाप रहा है। अपनो का गम मजदूरों साथ बांट  रहा है। कोरोनावायरस के चलते बे सहारा बेचारा बनकर अपने जज्बातो को दिल मे दबाये जो भी धन दौलत कमाये सब कुछ छोङकर शहरों से नाता तोङकर कल कारखानो से मुंह मोङकर जो बचाया  पाई पाई जोङ कर चल दिया गांव की ओर उसे पता है जहां से चला वहा से घर बहूत दूर है  पैदल चलने के लिये मजबूर है। राज्य की सीमाओं पर लगा रखा सख्त पहरा है। टीवी  डिबेट में सारे नेता लगे है  लेकीन उन्हे नहीं पता जिन्हे रोक रहें है उनके दिलों पैरों में जख्म बहुत गहरा है। बेचारे मजदूर है! आज हम मजबूर है!भले ही उन्ही के बदौलत देश की बदलती तकदीर भरपूर है! फीर भी आज बेसहारा है बेचारा है उनकी कोई सुनने वाला नही है। जब की उनका दिल काला नही है!न उनसे देश का दीवाला है। फीर भी सरकार की ब्यवस्था मे कोई नहीं सुनने वाला है। सियासत की चक्की में पिस रहा है गरीब उसको कोई नही दिखाई दे रहा है । अजीब हालात हो गये है।लगता देश के सारे नेता तपती दोपहरी की गर्मी में एयरकंडीशनर में नींद में सो गये है! गरीबों के रहनुमाओ का कहीं अता पता नहीं है। इसी के चलते आज सरकारी ब्यवस्था सङक पर गरीबो को सता रही है।मौत का रास्ता दिखा रही है।कोरोना खतरनाक मंजर पैदा करता हुएं बढ़ रहा है ।दिल्ली दहल रही है ,मुम्बई बेहाल है , बिहार मे रोजाना बढ रहा करोना ,तो यूपी में भारी बवाल है! राजस्थान, हरियाणा ,पंजाब, कोई नही खुशहाल है! गुजरता समय गुजरात की अग्नि परीक्षा ले रहा है। करोना के कहर में सब कुछ तबाह हो रहा है।अब सबसे अधिक ताबही ग्रामीण इलाको मे फैल रही है हर तरफ गांवों में कोरोना की बिषैली हवा चल रही है।अभी तो राज्यो की सिमाओं  पर लगभग लाखों मजदूर फंसे हुये है जो दिल्ली, अहमदाबाद, सूरत ,जैसी शहरो से पैदल चलकर आ रहें है। लेकीन राज्य सरकारो ने आगे बढने से रोक दिया है।दिल के अरमा आंसुओ मे बह गये।हम वफा करके भी तन्हा रह गये।शायद इनका आखरी हो यह सितम सोच कर हर सितम मजदूर सह गये।यह नगमा आज हकीकत का नजारा पेश कर रहा है।



रिपोर्ट : पिन्टू सिंह

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