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जाने क्यों क्रांति वीरों ने बैरिया के धोखेबाज थानेदार को सबक सिखाने के लिए 18 अगस्त की तारीख मुकर्रर की




रामगढ़,बलिया।  16 अगस्त को जब भूपनारायण सिंह, सुदर्शन सिंह आदि नेताओं के साथ 15 हजार से अधिक जनता बैरिया थाने पर कब्जा करने पंहुची थी। तब के ब्रिटिश राज के तत्कालीन हिंदुस्तानी धोखेबाज थानेदार काजिम हुसेन ने इस हुजूम को देख खुद ही आत्म समर्पण कर का बहाना कर थाने पर तिरंगा झंडा फहराने और थाना खाली करने के लिए दो दिन की मोहलत मांग लिया। लेकिन उसने उसी दिन बलिया से पांच सशस्त्र सिपाही मंगवा लिया और राष्ट्रीय झंडे को उतारकर फेंकवा दिया। यह खबर जब सुबह आग की तरह क्षेत्र के गांव-गांव तक लोगों के कान तक पहुंची तो लोगों में गुस्से का अंबार फूट गया। द्वाबा के क्रांतिवीरों ने धोखेबाज थानेदार से बदला चुकाने की तारीख 18 अगस्त तय किया। दोपहर होते होते क्षेत्र के 25 हजार से भी अधिक द्वाबा के स्त्री-पुरूष, वृद्धों आदि ने बैरिया थाने को घेर लिया।





बैरिया थाने पर बढ़ती भीड़ को देख थानेदार ने थाने के सभी कमरों में ताला बंद करा दिया और अपने 14 सिपाहियों को लेकर खुद थाने की छत पर चढ़कर मोर्चाबंदी कर ली थी। नेताओं ने उससे थाना खाली कर जनता को सौंपने की बात कही। लेकिन धोखेबाज थानेदार द्वाबावासियों को अपनी झूठी बातों में फंसाता रहा। थाना पर उपस्थित जननेताओं ने कहा कि तुम अपने सिपाहियों के साथ नीचे उतर जाओ और हमारे साथ चलकर रेल पटरी उखाड़ने में सहयोग करो, तो हम मान लेंगे कि तुम भी सच्चे हिन्दुस्तानी हो, लेकिन वह उपर फेंकी गयी गांधी टोपी को पहनकर तिरंगे को चूमने लगा और कहा कि हम लोग नीचे उतरेंगे तो जिन लोगों पर हमने दफा 110 चलाया है, वह लोग हमें मार डालेंगे। आजादी के दीवानों को इस चालबाज मक्कार थानेदार की बात अच्छी नहीं लगी।

कुछ पल बाद ही सामने से 4-5 सौ लोग फाटक, चहारदीवारी कूदकर थाने में दाखिल हो गये। थानेदार ने सिपाहियों को गोली चलाने का आदेश दिया। पहली गोली हीरा सिपाही ने दागी जो सुदर्शन सिंह को लहूलुहान करते हुए निकल गयी। अब भींड़ बेकाबू हो गयी। लोग आड़ लेकर पत्थर चलाने लगें और पुलिस गोलियां चलाने लगी। थाने में क्रांतिवीरों की लाशें बिछने लगी। 
      
 मौके का फायदा उठाकर 25 साल के क्रांतिवीर कौशल कुमार थानेदार के आवास की छत से छलांग लगाकर थाने की छत पर जा पंहुचे, जैसे ही वह थाने पर हाथ में लिए तिरंगे को फहराने बढ़े, सिपाही जगदम्बा प्रसाद झण्डे को छीनने बढ़े, कौशल कुमार ने उन्हे पटक दिया। तभी महमूद खां नाम के दूसरे सिपाही ने आजादी के इस दीवाने पर ताबड़तोड़ चार गोलियां दाग दीं।
 हाथ में तिरंगा लिए कौशल कुमार सिंह छत से नीचे जमीन पर आ गिरे। 

थोड़ी देर बाद क्रांतिवीर कौशल को थोड़ा होश आया तो उनके मुंह से यही वाक्य निकला कि थाने का क्या हुआ ? जब साथियों ने बताया कि थाने पर कब्जा हो गया। तिरंगा फहर रहा है, तब इस वीर ने तिरंगे को सलामी देते हुए अपनी अंतिम सांस लेकर बलिया के इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गये। तब से बलिया जिले के इतिहास में 18 अगस्त 1942 की क्रांति को अगस्त क्रांति के नाम से जाना जाता है। इस दिन थाने पर तिरंगा फहराते समय 18 क्रांतिकारी शहीद हो गए थे। शहीद क्रांतिकारियों की याद में प्रत्येक वर्ष शहीद स्मारक परिसर में मेला लगता है जिसमें लोग शहीदों को नमन करते हैं। अगस्त क्रांति को लेकर क्रांतिकारियों के हौसले काफी बुलंद थे। क्रांतिकारियों ने रेलवे स्टेशन फूंक दिया था रेल पटरियों को उखाड़ दी थीं। 

शहीद होने वालों में गोन्हिया छपरा निवासी निर्भय कुमार सिंह, देवबसन कोइरी, विशुनपुरा निवासी नरसिंह राय, तिवारी के मिल्की निवासी रामजनम गोंड, चांदपुर निवासी रामप्रसाद उपाध्याय, टोलागुदरीराय निवासी मैनेजर सिंह, सोनबरसा निवासी रामदेव कुम्हार, बैरिया निवासी रामबृक्ष राय, रामनगीना सोनार, छठू कमकर, देवकी सोनार, शुभनथही निवासी धर्मदेव मिश्र, मुरारपट्टी निवासी श्रीराम तिवारी, बहुआरा निवासी मुक्तिनाथ तिवारी, श्रीपालपुर निवासी विक्रम सोनार, भगवानपुर निवासी भीम अहीर शामिल थे


रिपोर्ट अवनीश मिश्र

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