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संसार के समस्त शुभ कर्मों का मूल सत्संग है:- लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी



 

दुबहर:-व्यक्ति बड़ा नहीं होता है परिस्थिति बड़ी होती है। परिस्थिति के अनुसार मनुष्य को जीवन जीना चाहिए। बिना संकल्प के किसी भी धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। भागवत कथा श्रवण करने से हमारे चित्त में भगवान का निवास हो जाता है। उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के  कृपा पात्र शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने क्षेत्र के जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच   मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में प्रवचन के दौरान शनिवार की देर शाम कही। उन्होंने बतलाया कि सतयुग ,त्रेता ,द्वापर युग मे बहुत दिनों तक योग करने से जिस फल को हम प्राप्त नहीं कर पाते हैं, जिस फल को हम बहुत दिनों तक समाधि लगाने पर भी प्राप्त नहीं कर पाते , उस फल को इस कलयुग में हम भगवान की कथा को सुनने से प्राप्त करते हैं।उन्होंने कहा कि भगवान का कीर्तन मर्यादा के अनुसार होना चाहिए। निष्काम भाव से भागवत कथा को कभी भी सुना जा सकता है। बतलाया कि धार्मिक अनुष्ठान को शुरू करने से पहले सात्विक  व शुद्ध भोजन ग्रहण करना चाहिए। स्नान करते समय ,भोजन करते समय, लघु शंका करते समय, पूजा करते समय किसी को भी व्यावहारिक प्रणाम नहीं करना चाहिए। उनको मन ही मन प्रणाम करना चाहिए। 

प्रवचन के दौरान स्वामी जी ने कहा कि जैसे बीज में आर्द्रता आते ही वह  अंकुरित होने लगता है और विशाल वृक्ष के रूप में उसकी यात्रा आरंभ हो जाती है।वैसे ही जीवन में संत-सत्पुरुषों का आगमन हो जाए तो जीवन में श्रेष्ठता-दिव्यता आने लगती है।  संसार के समस्त शुभ कर्मों का मूल सत्संग ही है।

रिपोर्ट:-नितेश पाठक

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