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तपस्या से जीवन सवरता है, भोग से नहीं: जीयर स्वामी



दुबहर:-भारतीय संस्कृति व धर्म यह शिक्षा देते हैं। तपस्या से ही जीवन सवरता है। आदि काल से संत, महात्मा तपस्या करते चले आए हैं। वे इतने महान हुए की उनके उपदेश आज भी हमें शिक्षा देते हैं। यह सबकुछ उनकी तपस्या व साधाना का फल है। यह व्यवस्था आज भी कायम है। वही मनुष्य सफल है जो तपस्या करता है। जो छात्र लगन से अध्ययन करता है। सामाजिक कुरीतियों से दूर रहता है। वही आगे चलकर सफल होता है। यह तभी संभव है जब आप भोग से दूर रहेंगे। क्योंकि भोग से व्यक्ति का जीवन विकृत हो जाता है।

उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज जी के  कृपा पात्र शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में अपने प्रवचन के दौरान रविवार की देर शाम कही।

स्वामी जी ने कहा की भोग के छह उदाहरण की  चर्चा मिलती है। किसी का स्मरण, कीर्तन, हास-परिहास, दुर्भावना से किसी को देखना व वासना यह सबकुछ भोग की श्रेणी में आता है। अगर आपको तपस्या के मार्ग पर चलना है तो वाणी, आचरण, व्यवहार को संयमित रहना चाहिए। यह सबकुछ तपस्या के समान है। जो व्यक्ति में गुणों का सृजन करते हैं। शास्त्रों में ऐसी चर्चा है। आने वाले समय में धर्म व कर्म तो होगा। पर शर्म नहीं रहेगी। आज वह आपके सामने है। यह उचित नहीं है। किसी पुरुष अथवा नारी द्वारा किसी अन्य से हास-परिहास को उचित नहीं माना गया है। यह सबकुछ मर्यादा के विपरीत है। अगर आप इनकी अनदेखी करेंगे तो उसका परिणाम भी आपके सामने आएगा। अगर आप भोग करेंगे तो आपको रोग का सामना करना पड़ता है। इन सबसे बचने का सुगम मार्ग है। पूरे जगत में परमात्मा की सत्ता मानते हुए अपने कर्मो को परमात्मा को सौंप दें। आपके दुर्गुण स्वयं समाप्त होने लगेंगे। यह ध्यान रहे हमेशा हृदय में उनके स्वरूप की छवी बनाए रखें। अर्थात हर समय उनका ध्यान करें।



रिपोर्ट:-नितेश पाठक

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