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सनबीम स्कूल बलिया में सृजन: संस्कार गीत कार्यशाला" का हुआ भव्य समापन, युवा प्रतिभाओं ने बिखेरी अपनी कला की छटा




बलिया : शिक्षण के साथ बच्चों को सभी गतिविधियों में उत्कृष्ठ प्रदर्शन हेतु प्रेरित करना तथा उन्हें शिक्षा के विभिन्न नवीन आयामों  से शिक्षित करने का काम जिले का सनबीम स्कूल करता है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान, लखनऊ (संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश) और सनबीम स्कूल बलिया के संयुक्त तत्वावधान में विद्यार्थियों का  संस्कृति से जुड़ाव उत्पन्न करने के लिए 10 दिवसीय सृजन:संस्कार गीत कार्यशाला का आयोजन किया गया था। जिसका आज भव्य समापन हुआ। 

बता दें कि 13 मई से 22 मई तक सुबह 8:00 बजे से प्रातः 10:00 बजे तक चली इस कार्यशाला में युवा प्रतिभागियों ने संस्कार गीतों की बारीकियों को सीखा और अंतिम दिन अपने मनमोहक प्रदर्शन से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

इस कार्यशाला में सनबीम स्कूल, बलिया की कुल 13 छात्राओं ने भाग लिया, वहीं गाजीपुर से भी 3 बच्चों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।



 इन सभी बच्चों ने अपनी लगन और मेहनत से संस्कार गीतों के महत्व और गायन शैली को आत्मसात किया।

समापन समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. गनेश कुमार पाठक थे, जिन्होंने बच्चों के प्रदर्शन की सराहना की और उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं। इस अवसर पर विद्यालय निदेशक  डॉ. कुंवर अरुण सिंह भी उपस्थित रहे और उन्होंने कार्यशाला के सफल आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए भविष्य में भी ऐसे विभिन्न कौशलों को विकसित करने वाले कार्यशाला में सहभागिता हेतु प्रेरित किया।


कार्यशाला के कुशल मार्गदर्शन का श्रेय शिक्षक शैलेंद्र कु. मिश्रा और उनकी टीम को जाता है, जिन्होंने बच्चों को संस्कार गीतों की गहरी समझ प्रदान की। इस अवसर पर सनबीम स्कूल के संगीत विभाग से अध्यापक अमित पांडेय और कृष्णा वर्मा ने भी इस कार्यशाला को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य युवा पीढ़ी को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और संस्कार गीतों से जोड़ना था। समापन दिवस पर बच्चों द्वारा प्रस्तुत किए गए गीतों ने दर्शकों को भावुक कर दिया और भारतीय संस्कृति की परंपराओं के प्रति उनका सम्मान और भी बढ़ गया। यह कार्यशाला न केवल संगीत का एक मंच थी, बल्कि यह बच्चों को भारतीय संस्कारों और मूल्यों से जोड़ने का एक सफल प्रयास भी था।



By- Dhiraj Singh

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