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बुढ़वा ब्रम्हा बाबा के स्थान पर चल रहे सात दिवसीय महायज्ञ का समापन मीरा व श्रीकृष्ण के अटूट प्रेम व रुक्मणी श्रीकृष्ण के विवाह की कथा

 


मनियर, बलिया ।मनियर के सतगु ब्रह्म बाबा (बुढ़वा बाबा) के स्थान पर चल रहे हरियाली श्रृंगार उत्सव सप्त दिवसीय अभिषेकात्मक संगीत मय श्रीमद् भागवत कथा का समापन सातवें दिन गुरुवार को संपन्न हुआ।वेदाचार्यो ने विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर आरती की व यज्ञ की समाप्ति हुई लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया एवं बाबा इसके पुर्व यज्ञ के छठवें दिन बुधवार की रात्रि को भागवत कथा में प्रवचन करते हुए व्यास आचार्य पंडित धनंजय गर्ग ने मीरा और श्री कृष्ण के अटूट प्रेम के बारे में एवं रुक्मणी और श्री कृष्ण विवाह के बारे में चर्चा की ।बताया कि मीरा कृष्ण की आरती कर रही थी दर्शन नहीं हुआ तो बोली की हे छलिया! मैं तुमसे बेपनाह मोहब्बत किया है ।तुम्हारे लिए मैं ससुराल छोड़ दिया । पति को छोड़ दिया और तुम दर्शन नहीं दे रहे हो ।आज के बाद न कोई तुमसे प्यार करेगा, नहीं तुम्हारी कोई आरती करेगा।यह कहते हुए उसने आरती की थाल जमीन पर पटक दी ।इसी बीच भगवान श्री कृष्ण के मूर्ति फट जाती है और उस मूर्ति से दो हाथ निकलते हैं और मीरा को अपने अंक में समाहित कर लेते हैं । आचार्य ने रुक्मिणी और श्री कृष्ण की शादी की चर्चा करते हुए कहा कि रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्म की पुत्री थी ।उसका भाई रुक्मी राजा शिशुपाल से उसका विवाह करना चाहता था क्योंकि शिशुपाल और रुक्मी दोनों दोस्त थे। शिशुपाल श्री कृष्ण को अपना दुश्मन मानता था लेकिन रुक्मणी श्री कृष्ण से अटूट प्रेम करती थी और उनसे ही शादी करना चाहती थी ।यह बात उसने अपनी भाभी को बताई । भाभी के कहने पर रुक्मणी ने  पंडित जी से श्री कृष्ण के यहां संदेश भेजा कि मैं आपसे बेपनाह मोहबत करती हूं और आपसे ही शादी करना चाहती हूं लेकिन मेरा भाई मेरा शादी राजा शिशुपाल से करना चाहता है ।मैं शादी उससे नहीं करूंगी भले ही अपना प्राण मुझे त्यागना पड़े । रुक्मिणी ने कहा कि मैं मां देवी के स्थान पर पूजा करने जाऊंगी और आप वहां आ जाना ।रुक्मिणी मंदिर में अंदर गई। श्री कृष्ण भी पहुंच गए।जब श्री कृष्ण मंदिर में प्रवेश करने लगे तो रुक्मिणी के सैनिकों ने रोक दिया।श्री कृष्णा माया फैलाया।श्री कृष्ण की अद्भुत छवि को  सब निहारने लगे।  श्री कृष्ण मंदिर के अंत:पुर में गए जहां रुक्मणी ने उन्हें वरमाला पहनाया। आयोजक विनय शंकर पाठक रहे।


प्रदीप कुमार तिवारी

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