प्रसूता की मौत ने छीन ली किलकारी, अवैध क्लीनिक बना मातम का घर
भदोही। जिस घर में किलकारी गूंजने वाली थी, वहां अब मातम पसरा है। जिस मां की गोद भरनी थी, वही अब दुनिया से रुख्सत हो चुकी है। भदोही के त्रिलोकपुर नहरा स्थित एक अवैध क्लीनिक में एक और प्रसूता विद्यावती ने लापरवाही की भेंट चढ़कर जान गंवा दी।
मिर्जापुर जिले के तिलठी गांव निवासी अजय कुमार अपनी पत्नी को स्वस्थ संतान की आस लेकर रविवार को दोपहर लगभग 12 बजे गुप्ता क्लीनिक लेकर आए थे।
दोपहर के बाद ऑपरेशन कर बच्चे को जन्म तो मिल गया, लेकिन मां की हालत बिगड़ती गई। दर्द की शिकायत पर महज एक इंजेक्शन देकर जिम्मेदारी पूरी कर ली गई। रात में विद्यावती की सांसें थम गईं — और एक नई जिंदगी के साथ एक जिंदगी हमेशा के लिए चली गई।
अगले दिन जब यह खबर फैली, तो परिजनों का गुस्सा फूट पड़ा। हंगामा हुआ, रोना-चिल्लाना गूंजा, लेकिन विद्यावती वापस नहीं आई।
"मैं तो सिर्फ मां बनने आई थी, ये तो मेरी अंतिम यात्रा बन गई…"
यह भाव अब उस नन्हें बच्चे की आंखों में बस कर रह गया, जिसने जन्म लेते ही अपनी मां को खो दिया।
फिर सील हुआ मौत का अड्डा
जैसे ही यह मामला डीएम शैलेष कुमार के संज्ञान में आया, उन्होंने तुरंत कार्रवाई के आदेश दिए। बुधवार को सीएमओ डॉ. एस.के. चक, एसडीएम (न्यायिक) आकाश कुमार, और डॉ. विनोद सिंह के नेतृत्व में टीम मौके पर पहुंची।
जब क्लिनिक के स्टाफ से लाइसेंस, बेहोशी की दवा और अन्य मेडिकल दस्तावेजों की मांग की गई, तो कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। मरीजों की जान किसके भरोसे थी — यह सवाल खड़ा हो गया।
अस्पताल को तत्काल सील कर दिया गया। वहां भर्ती 6 मरीजों को आनन-फानन में सीएचसी औराई और जिला अस्पताल भेजा गया।
इतिहास गवाह है — यह पहला मामला नहीं है
जिस क्लिनिक में विद्यावती की मौत हुई, वह कोई नया या गुप्त अस्पताल नहीं था। पिछले 10 साल में कम से कम तीन बार यह क्लिनिक सील किया जा चुका है — 2012, 2018 और 2021 में।
हर बार कोई मां या नवजात मौत की बलि चढ़ता है, मीडिया में खबरें बनती हैं, कुछ दिन ताले लगते हैं — फिर उसी ताले की चाभी से मौत का धंधा दोबारा खुल जाता है।
कब तक चलती रहेगी ये मौत की दुकान?
विद्यावती की कहानी अकेली नहीं है। ऐसी न जाने कितनी माएं इस लापरवाही का शिकार हो चुकी हैं।
"हमने बेटी खोई है, लेकिन उम्मीद है कि अब किसी और की बहन, मां, पत्नी इस झोलाछाप की वजह से न मरे,"
यह कहना था विद्यावती के भाई का, जिनकी आंखें सूख चुकी थीं, लेकिन दर्द अभी भी रिस रहा था।
सरकार और प्रशासन को अब सिर्फ कार्रवाई नहीं, स्थायी समाधान करना होगा।
वरना हर दो साल पर एक और विद्यावती, एक और मासूम, एक और अजय — लापरवाही का शिकार होते रहेंगे।
By- Dhiraj Singh
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